Saturday 31 October 2015

अंतराल (महासमर भाग 5)- नरेंद्र कोहली


Antral (Mahasamar - 5) by Narendra Kohli 

‘महासमर’ का यह पाँचवा खंड है- ‘अंतराल’।
इस खंड में, द्यूत में हारने के पश्चात पांडवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत-श्रृंग पर वनवास करने गई थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गांधारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।....किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों उनके साथ में वह हस्तिनापुर मे विदुर के घर रही। क्यों ? 

पांडवों की पत्नियाँ-देविका, बलधरा, सुभद्रा, करेणुमति और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गई; किन्तु द्रौपदी कांपिल्य नहीं गई। वह पांडवों के साथ वन में ही रही। क्यों ?
कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पांडवों का राज्य छीनकर, पांडवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों ? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पांडव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे ? 

इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे ? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था ? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ देह के साथ कोई नहीं जा सकता ? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे ? अपनी पिछली त्राया में तीन-तीन विवाह करने वाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया ?

इस प्रकार अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर ‘अंतराल’ में प्रस्तुत किए गए हैं। यादवों की राजनीति, पांडवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदांधता संबंधी यह रचना पाठक के सम्मुख इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह-नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही संभव है ! प्रख्यात कथाओं का पुनर्सृजन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता; वह उनका युग-साक्षेप अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतंत्र अस्तित्व होता है; वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण ! मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।

मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर-देश, समाचार-पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है; और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की संम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के ‘प्राचीन’ में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की संभावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो, एक खंड सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सृजक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खंड का अंग होते हुए भी, खंडों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।

नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से संबद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है-आज के लेखक का मौलिक सृजन !

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युकिलिप्टस की डाली - कृष्णचन्द्र

Friday 30 October 2015

ज़िद्दी - इस्मत चुगताई


Ziddi - Ismat Chugtai

इस उपन्यास पर हिंदी फ़िल्म बनी थी

‘जिद्दी’ उपन्यास एक दुःखद प्रेम कहानी है जो हमारी सामाजिक संरचना से जुड़े अनेक अहम सवालों का अपने भीतर अहाता किये हुए है। प्रेम संबंध और सामाजिक हैसियत के अन्तर्विरोध पर गाहे-बगाहे बहुत कथा कहानियाँ लिखा जाती रहीं हैं लेकिन ‘जिद्दी’ उपन्यास इनसे अलग विशिष्टता रखता है।
यह उपन्यास हरिजन प्रेम का पाखण्ड करने वाले राजा साहब का पर्दाफाश भी करता है, और साथ ही औरत पर औरत के जुल्म की दास्तान भी सुनाता है।

‘जिद्दी’ उपन्यास के केन्द्र में दो पात्र हैं-पूरन और आशा। पूरन एक अर्द्ध-सामंतीय परिवेश में पला-बढ़ा नौजवान है जिसे बचपन से वर्गीय श्रेष्ठता बोध का पाठ पढाया गया है। कथाकार ने पूरन के चरित्र का विकास ठीक इसके विपरात दिशा मे किया है। उसमें तथाकथित राजसी वैभव से मुक्त अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के निर्माण की जिद है और वह एक जिद्दी की तरह अपने आचरण को ढाल लेता है। आशा उसके खानदान खिलाई (बच्चों को खिलाने वाली स्त्री) की बेटी है। नौकरानी आशा के लाजभरे सौन्दर्य का पूरन आसक्त हो जाता है। वर्गीय हैसियत का अन्तर इस प्रेम की त्रासदी में बदल जाता है। पूरन की जिद उसे मृत्यु की ओर धकेलती है। पारिवारिक दबाववश उसका विवाह शान्ता के साथ हो जाता है और इस तरह दो स्त्रियों-आशा और शान्ता का जीवन एक साथ उजड़ जाता है। यहीं इस्मत चुगताई स्त्री के सुखों और दुःखों को पुरुष से अलग करके बताती है, ‘‘मगर औरत ? वो कितनी मुख्तविफ होती है। उसका दिल हर वक्त सहमा हुआ रहता है। हँसती है तो डर के, मुस्कराती है तो झिझक कर।’’ दोनों स्त्रियाँ इसी नैतिक संकोच की बलि चढती हैं। 

जिद्दी के रूप में पूरन के व्यक्तित्व को बड़े ही कौशल के साथ उभारा गया है। इसके अलावा भोला की ताई, चमकी, रंजी आदि के घर के नौंकरों और नौकरानियों की संक्षिप्त उपस्थिति भी हमें प्रभावित करती है। इस्मत अपने बातूनीपन और विनोदप्रियता के लहजे के सहारे चरित्रों में ऐसे खूबसूरत रंग भरती हैं कि वे सजीव हो उठते हैं एक दुःखान्त उपन्यास में भोला की ताई जैसे हँसोड़ और चिड़चिड़े पात्र की सृष्टि कोई बड़ा कथाकार ही कर सकता है। छोटे चरित्रों को प्रभावशाली बनाना मुश्किल काम है।

‘जिद्दी’ उपन्यास में इस्मत का उद्धत अभिव्यक्ति और व्यंग्य का लहजा बदस्तूर देखा जा सकता है। बयान के ऐसे बहुत से ढंग और मुहावरे उन्होंने अपने कथात्मक गद्य में सुरक्षित कर लियें हैं जो अब देखें-सुने नहीं जाते। इस उपन्यास में ऐसी कामयाब पाठनीयता है कि हिन्दी पाठक इसे एक ही बार में पढ़ने का आनन्द उठाना चाहेंगे।


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युगपथ - सुमित्रानंदन पंत

Yugpath - Sumitranandan Pant
युगपथ सुमित्रानन्दन पंत की 1948 ई. में प्रकाशित रचना है। सुमित्रानन्दन पंत का नवाँ काव्य-संकलन है। इसका पहला भाग 'युगांत' का नवीन और परिवर्द्धित संस्करण है। दूसरे भाग का नाम 'युगांतर' रखा गया है, जिसमें कवि की नवीन रचनाएँ संकलित हैं। अधिकांश रचनाएँ गाँधी जी के निधन पर उनकी पुण्य स्मृति के प्रति श्रद्धांजलियाँ हैं। शेष रचनाओं में कवीन्द्र रवीन्द्र, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और अरविन्द घोष के प्रति लिखी गयी प्रशस्तियाँ भी मिलती हैं। अनेक रचनाओं पर कवि के अरविन्द-साहित्य के अध्ययन की छाप स्पष्ट है। अंतिम रचना 'त्रिवेणी' ध्वनि-रूपक है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती को तीन विचार धाराओं का प्रतिनिधि मानकर उनके संगम में मानव-मात्र के कल्याण की कल्पना की गयी है।
'युगपथ' का सबसे बड़ा आकर्षण 'श्रद्धा के फूल' शीर्षक सोलह रचनाएँ हैं, जिसमें कवि ने बापू के मरण में अभिनव जीवनकल्प की कल्पना की है, और इन्हें अपराजित अहिंसा की ज्योतिर्मयी प्रतिमा के रूप में अंकित किया है। गांधीजी के महान व्यक्तित्व और कृतित्व को सोलह रचनाओं में समेट लेना कठिन है और 'युगांत' तथा 'युगवाणी' में पंत ने उनके तथा उनकी विचारधारा को कवि-हृदय की अपार सहानुभूति देकर चित्रित किया है। परंतु इन सोलह रचनाओं में बापू को श्रद्धांजलि देते हुए कवि काव्य, कला और संवेदना के उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता है फिर शोक-भावना से अभिभूत, परंतु अंत में वह उनकी मृत्यु को 'प्रथम अहिंसक मानव' के बलिदान के रूप में चित्रित कर उनकी महामानवता की विजय घोषित करता है। वह शुभ्र पुरुष (स्वर्ण पुरुष) के रूप में बापू का अभिनन्दन करता और उन्हें भारत की आत्मा मानकर देश को दिव्य जागरण के लिए आहूत करता है। यह सोलह प्रशास्ति-गीतियाँ कवि की 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' साधना की प्रतिनिधि हैं।

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Sunday 25 October 2015

इक्ष्वाकु के वंशज (अमिश)

अमिश का रामायण आधारित उपन्यास 

Ikshwaku ke Vanshaj (Amish)
मेलुहा के मृत्युंजय, नागाओं का रहस्य और वायुपुत्रों की शपथ की अपर सफलता के बाद अमिश की राम पर आधारित एक नयी श्रृंखला 

३4०० ईसापूर्व, भारत

अलगावों से अयोध्या कमज़ोर हो चुकी थी. एक भयंकर युद्ध अपना कर वसूल रहा था. नुक्सान बहुत गहरा था. लंका का राक्षस राजा, रावण पराजित राज्यों पर अपना शासन लागू नहीं करता था. बल्कि वह वहां के व्यापार को नियंत्रित करता था. साम्राज्य से सारा धन चूस लेना उसकी नीति थी. जिससे सप्तसिंधु की प्रजा निर्धनता, अवसाद और दुराचरण में घिर गई. उन्हें किसी ऐसे नेता की ज़रूरत थी, जो उन्हें दलदल से बाहर निकाल सके. नेता उनमें से ही कोई होना चाहिए था. कोई ऐसा जिसे वो जानते हों. एक संतप्त और निष्कासित राजकुमार. एक राजकुमार जो इस अंतराल को भर सके. एक राजकुमार जो राम कहलाए.

वह अपने देश से प्यार करते हैं. भले ही उसके वासी उन्हें प्रताड़ित करें. वह न्याय के लिए अकेले खड़े हैं. उनके भाई, उनकी सीता और वह खुद इस अंधकार के समक्ष दृढ़ हैं.क्या राम उस लांछन से ऊपर उठ पाएंगे, जो दूसरों ने उन पर लगाए हैं ?क्या सीता के प्रति उनका प्यार, संघर्षों में उन्हें थाम लेगा?क्या वह उस राक्षस का खात्मा कर पाएंगे, जिसने उनका बचपन तबाह किया?क्या वह विष्णु की नियति पर खरा उतरेंगे?

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Saturday 24 October 2015

योद्धा (Yoddha#1 by Raj Comics)


योद्धा सीरीज़ का पहला कॉमिक

Yoddha
धरती पर आया एक भूकम्प और भूकम्प से बनी दरार में से निकला एक शूरवीर 'योद्धा' और जा पहुंचा राजनगर शहर जहाँ उसके हथियार पर लगे हीरे पर नज़र पड़ी कुछ उचक्कों की और उन्होंने घेर लिया योद्धा को। हर चीज़ से अनजान योद्धा को उस स्तिथि याद आने लगा अपना अतीत जहाँ वो अकेला टक्कर ले रहा था गुलामों की मल्लिका लोहांगी की खुनी सेना से परन्तु उसको धोखे से बंदी बना लिया उस सेना के सरदार बल्लार ने और ले चला बंदी बनाकर लोहांगी के पास। परन्तु उसके जहाज़ पर हमला कर दिया एक और हमलावर जंजीबार ने। योद्धा के आक्रमण से पहले से ही कमज़ोर बल्लार नहीं टिक पाया इस हमले से तब योद्धा ने ही की मदद बल्लार की और बल्लार बन गया योद्धा का साथी। जंजीबार को हरा योद्धा और बल्लार अब चल दिए लोहांगी से विद्रोह करने इधर जंजीबार भी भाग कर पहुंचा अपनी महारानी शांबरी के पास जो थी लोहांगी की ही बहन और जिसको थी तलाश योद्धा की। और फिर...........?

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दंगा (Tiranga#1 by Raj Comics)


तिरंगा सीरीज़ का पहला कॉमिक 

Danga (Tiranga)


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इंस्पेक्टर स्टील (Steel#1 by Raj Comics)


इंस्पेक्टर स्टील सीरीज़ का पहला कॉमिक 

Inspector Steel


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आई शक्ति (Shakti#1 by Raj Comics)


शक्ति सीरीज़ का पहला कॉमिक

Aayi Shakti (Shakti)

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परमाणु (Parmanu#1 by Raj Comics)


परमाणु सीरीज़ का पहला कॉमिक

Parmanu

दिल्ली पुलिस को मिली कुख्यात आतंकवादी सपेरा के दिल्ली में छुपे होने की सुचना और वो जा पहुंची सपेरा को गिरफ्तार करने। पर सपेरा पुलिस के हाथ से बच निकला लेकिन एक रहस्यमय मानव "परमाणु" ने उसको अपनी अद्भुत शक्तियों के द्वारा पकड़ लिया। इधर सपेरा ग्रुप के आतंकवादी अपने लीडर सपेरा को छुड़ाने के लिए करने लगे दिल्ली में तबाही की तैयारी और उन्हें रोकने के लिए एक बार फिर सामने आया वही हवा में उड़ता रहस्यमय परमाणु। और फिर.....................?

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कर्फ्यू (Doga#1 by Raj Comics)


डोगा सीरीज़ का पहला कॉमिक

सालों  पहले चम्बल की घाटी में आतंक मचाने वाला डाकू हलकान सिंह पुलिस से जान बचाते हुए जिसको मिला कूड़े के ढेर पर पड़ा एक नवजात बच्चा जिसको अपनी जान बचाने के लिए ढाल बनाया उसने। वही कुख्यात डाकू हलकान सिंह जो आज जाना माना मंत्री हलकट सिंह बन चूका था उसको मिली धमकी की ठीक 2 बजे उसको मौत के घाट उतार दिया जायेगा। इस धमकी के बाद पूरे शहर पर लगा दिया गया कर्फ्यू और उस कर्फ्यू के बीच हलकट सिंह को मौत देने आ पहुंचा कुत्ते का मास्क पहने एक रहस्यमय इंसान 'डोगा '। और फिर.............?

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भेड़िया (Bhediya#1 by Raj Comics)


भेड़िया सीरीज़ का पहला कॉमिक

Bheriya 
पेशेवर शिकारी काला बच्चा जिसने दुनिया के अलग-अलग कोने से बुलवाया अपने- अपने हुनर में माहिर 6 लोगों को और इन्हें बताया आसाम के जंगल के बांगडा कबीले के बारे में जहाँ था एक रहस्यमय भेड़िया मुख पहाड़ जिसमे रखी थी एक बेशकीमती मानव भेड़िये की एक आदमकद सोने की मूर्ति जिसे कबीले से चुराने निकले सातों धुरंधर, और बांगडा कबीले में चालाकी से जा पहुंचे और बांगडा कबीले के वार्षिक महोत्सव में जीतकर भेड़िये की मूर्ति ले उड़े, परन्तु उनका पीछा कर रही थी भेड़िया पर बलि चढ़ाई जाने वाली लड़की जीना। और फिर.........?

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मानसरोवर भाग 3 - प्रेमचंद

Mansarovar 3 by Premchand

यह प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानियों का संकलन है। उनके निधनोपरांत मानसरोवर नाम से ८ खण्डों में प्रकाशित इस संकलन में उनकी दो सौ से भी अधिक कहानियाँ शामिल है। किया गया है। 

डाउनलोड करें- मानसरोवर भाग 3

महासमर 4 (धर्म)- नरेंद्र कोहली

भीम के हाथ उठाकर अपने पीछे आते सारे लोगों को रुकने का संकेत किया। 

रुकने की आज्ञा प्रचारित होती गई और गज, अश्व तथा रथ रुकते चले गये। 

‘‘भैया ! खांडवप्रस्थ सामने दिखाई दे रहा है।’’ भीम अपने हाथी से उतरकर युधिष्ठिर के रथ के पास आ गया, ‘‘आपकी आज्ञा हो तो यहीं शिविर स्थापित कर दिया जाए। यहाँ शिविरों तथा रसोई की व्यवस्था हो और हम लोग आस-पास का क्षेत्र देख आएँ।’’

‘‘देखने को है ही क्या ?’’ युधिष्ठिर के कुछ कहने से पहले ही नकुल बोला, ‘‘चारों ओर वन-ही-वन हैं। जहाँ वन नहीं हैं, वहाँ पथरीली पहाड़ियाँ हैं, जिन पर तृण भी नहीं उगता।’’

‘‘नहीं ! ऐसी बात नहीं होनी चाहिए।’’ युधिष्ठिर की वाणी आश्वस्त थी, ‘‘कौरवों की प्राचीन राजधानी है। पुरुरवा, आयु, नहुष तथा ययाति ने यहीं से शासन किया था। यहां हमारी प्राचीन प्रासाद है। उससे लगा खांडवप्रस्थ नगर है, जहाँ हमारी प्रजा निवास करती है।’’

‘‘मुझे तो यहाँ कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा।’’ भीम ने अपनी आँखों पर हथेली की छायी करते हुए दूर तक देखने का अभिनय किया।


‘‘महाराज ! यहाँ शिविर स्थापित करने का तो आदेश दे ही दीजिए।’’ कृष्ण ने कहा, ‘‘आसपास कुछ दर्शनीय है या नहीं, इससे क्या अन्तर पड़ता है।’’

‘‘हाँ !’’ अर्जुन बोला, ‘‘प्रासाद है तो 

ठीक है, नहीं तो हमें बनाना है। नगर है तो उसका पुनरुद्धार करना है, नहीं है तो बसाना है। अब रहना तो यहीं है न। महाराज धृतराष्ट्र ने हमें जो राज्य और राजधानी दी है, उसका हम अपमान तो नहीं कर सकते !’’

‘‘अर्जुन ! तुम्हारी वाणी में पितृव्य के प्रति कटुता है...।’’

‘‘मेरे मन में तो उनके प्रति घृणा है।’’ भीम ने युधुष्ठिर की बात काट दी, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि आपके मन में उनके व्यवहार की कोई प्रतिक्रिया होती क्यों नहीं। उन्होंने हमारे विरुद्ध कौन-सा षड्यन्त्र नहीं रचा और तब भी आप चाहते हैं कि अर्जुन की वाणी में पितृव्य के लिए कटुता तक न आए। आप मनुष्य नहीं हैं क्या ?’’


‘‘ज्येष्ठ, मनुष्य तो हैं ही मध्यम ! किन्तु धर्म राज भी हैं। वे अकारण ही धर्मराज नहीं कहलाते।’’ कृष्ण का स्वर इस समय परिहास शून्य ही नहीं पर्याप्त गंभीर भी था, ‘‘उन्होंने अपने ‘स्व’ को जीत लिया। जिस मन में सर्वभूताय प्रेमरूपी ईश्वर होना चाहिए, उसमें वे घृणा को स्थान दें... केवल इसलिए, क्योंकि कुरुराज धृतराष्ट्र के मन में अपने भ्रातुष्पुत्रों के प्रति प्रेम नहीं है। यह तो वैसा ही हुआ कि एक व्यक्ति ने अपने घर में मल बर लिया है और वह मल यदा-कदा दूसरों पर फेंकता रहता है, इसलिए आप भी अपने घर में मल भर लें, ताकि आप भी अपनी सुविधानुसार उस पर मल फेंक सकें।’’

‘‘प्रकृति के नियमों के अनुसार स्वाभाविक तो यही है।’’ भीम ने उत्तर दिया।

‘‘किसी एक का स्वभाव ही तो मानव का धर्म नहीं है। धर्म तो प्रकृति का अतिक्रमण कर आत्मस्थ होकर ही सिद्ध होगा।’’ कृष्ण ने उत्तर दिया, ‘‘साधारण मनुष्य प्रकृति के नियमों का दास होता है मध्यम ! किन्तु असाधारण व्यक्ति का सारा उपक्रम उन नियमों का स्वामी बनने के प्रयत्न में है।’’ कृष्ण ने रुककर भीम को देखा, ‘‘अब तुम महाराज की ओर से शिविर स्थापित करने की घोषणा प्रचारित कर दो और चलो हमारे साथ। मैं तुम्हें तुम्हारा वह प्रासाद और नगर दिखाता हूँ।’’

‘‘तुम इस क्षेत्र से परिचित हो माधव ?’’ अर्जुन ने कुछ आश्चर्य से पूछा।

कृष्ण के चेहरे पर सम्मोहनपूर्ण मुस्कान उभरी, ‘‘धनंजय ! यह क्षेत्र चाहे कौरवों के राज्य के अन्तर्गत माना जाता है, किन्तु यह यमुना के तट पर, गंगा-तट पर नहीं। यमुना हमारी नही है। मथुरा, वृन्दावन, गोकुल... कुछ भी तो यहाँ से दूर नहीं है।’’


वे सब लोग कृष्ण के पीछे-पीछे चल रहे थे। अर्जुन, कृष्ण के सबसे अधिक निकट था। युधिष्ठिर, भीम, तथा बलराम उनके पीछे थे और इस प्रयत्न में थे कि कुंती और द्रौपदी भी उनके साथ-साथ चल सकें। नकुल और सहदेव सबके पीछे थे और खांडवप्रस्थ संबंधित अपनी जानकारी को लेकर विवादों में उलझे हुए थे।

झाड़ियों के बीच से बनी धुँधली पगडंडियों पर कृष्ण के पग बढ़ते जा रहे थे।...यह तो स्पष्ट ही था कि मनुष्य के चरण इन मार्गों पर पड़ते रहते हैं। नहीं तो इन पगडंडियों का अस्तित्व ही न होता। किन्तु, यहाँ न पथ थे, न राजपथ। यहाँ रथों का आवागमन नहीं हो सकता था। दस-दस अश्वों की पक्तियाँ साथ-साथ नहीं चल सकती थीं, यदि पांडवों को यहाँ रहना है तो उन्हें पथ और राजपथों का निर्माण करना होगा। भवनों, हवेलियों, अट्टालिकाओं और प्रासादों का निर्माण करना होगा। जब मनुष्य रहने लगेंगे तो उनकी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए क्या नहीं बनाना पड़ता....जब यादव कुशस्थली पहुँचे थे, तो वहाँ क्या था ? यादवों ने भी तो द्वारका जैसे वैभव शाली नगर का निर्माण किया। प्रत्येक नगर को कोई- न-कोई राजा बसाता ही है, तो पांडव अपने लिए एक नया नगर नहीं बसा सकते


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चंद्रकांता संतति भाग 3 (देवकी नंदन खत्री)

Thursday 22 October 2015

कांव कांव (Anthony#1 by Raj Comics)


एंथोनी सीरीज का पहला कॉमिक 

Anthony aur Kanw Kanw


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अंतरिक्ष - राजीव सक्सेना

Saral hindi me Antariksh ka varnan


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आरती (Kavita Sangrah)

नूरजहाँ (Noorjahan)

नूरजहाँ - एक ऐतिहासिक उपन्यास

‘‘नहीं मेहेर, उधर न जाओ।’’
दासी का वर्जन पाकर वह उदीयमान यौवना, चपला सहम उठी। बिजली सी यह विचारधारा उसके मानस में चमक उठी, ‘बकने भी दो, अपने ही भय से बुझी हुई इस दासी की लड़की को। यह जान क्या सकती है मेरे रूप के स्वप्नों को। सम्राट् का कोई निशेध नहीं है यहाँ पर। हम उनके राजभवन के बाहर हैं।’ उस सुन्दरी ने साहस एकत्र किया। एक अज्ञात आकांक्षा से खिंची हुई वह आगे बढ़ी। उसने दासी के अनुरोध की उपेक्षा कर दी। 

सम्राट् अकबर के राजप्रासाद के सिंहद्वार के बाहर द्वारपाल की एक छोटी कुटिया थी। उसमें वह अपने परिवार के साथ रहता था। दासी तेहरान से नवागत मिर्जा की लड़की थी। वह संभ्रात पर आर्थिक संकटों में घिरा हुआ साहसी मनुष्य; अपने गिरि, वनों, मरु और सरिताओं को पार करता हुआ इतनी दूर भारतवर्ष में चला आया था, मुगल सम्राटों के उस विश्व राज्य की देश-देशांतर में फैली हुई कीर्ति को सुनकर। उसकी स्त्री का वियोग हो गया था। एक पुत्र और एक कन्या उसके साथ थे। दोनों की अवस्था विवाह के योग्य थी। मिर्जा ने फिर विवाह नहीं किया। अकबर की स्त्री से उसका पीहर का संबंध है। 

निकट ही एक छोटे से सरोवर में अन्तःपुर के कुछ प्रतिपालित कपोत क्रीड़ा कर रहे हैं ! सरोवर के चारों ओर संगमर्मर के चबूतरे ओर सोपान पंक्तियाँ बनी हुई हैं। कुछ कपोत जल में स्नान कर रहे हैं और कुछ चबूतरों पर खेल रहे हैं। उस नवयुवती का मन उधर ही खिंचा हुआ था। उसने अपनी कल्पना में यह ठान लिया था कि एक दो कबूतर पकड़कर वह अवश्य ही अपने घर ले जावेगी, और उन्हें अपना सहचर बनावेगी वह अपने हृदय में कहने लगी-‘सम्राट् के हैं, तो क्या हुआ। अनगिनती यहीं पर हैं। भीतर राजभवन में और न जाने कितने होंगे। क्या कमी पड़ जायगी, यदि दो कबूतर मैं अपने साथ ले गई तो ! कौन देखता है ?’

परन्तु, देख रहा था युवराज सलीम। सिंहद्वार के परकोटे पर चढ़ा हुआ सलीम। लगभग पच्चीस-छब्बीस वर्ष की कच्ची आयु का वह राजकुमार, जिसके हृदय में उद्दाम यौवन की लालसाएँ अनेक सुप्त और अधिकांश जागती हुई थीं। वह देख रहा था, उस एक अपरिचित नारी को। प्रथम दर्शन ही में सलीम उसकी ओर बलात् आकृष्ट हो गया-‘कौन है यह ? एक-एक अंग मानो रूप की चरम आदर्श साँचे में ढला हुआ ! एक-एक चेष्टा मानो माधुरी का उद्गम स्रोत हृदय में गड़कर वहाँ गढ़ बना लेने वाला। इसकी छवि अलौकिक है। वेशभूषा से भी यह किसी संभ्रांत कुटुंब की जान पड़ती है, फिर यह हमारे राजभवन में क्यों नहीं आई ? पहले कब देखा मैंने इसे ? नहीं, आज ही, यहीं तो पहली बार है।’ सलीम परकोटे पर से उतरने लगा। 
‘‘शिशु-अवस्था में ही माता मर गई इसकी।’’ दासी ने कहा। 

‘‘भाई की आयु कितने वर्ष की है ?’’ द्वारपाल की स्त्री ने पूछा। 
‘‘होगा कोई इक्कीस-बाईस साल का, इससे चार-पाँच वर्ष बड़ा।’’
‘‘बड़ी सुन्दर, रूप और लक्षणों से युक्त है यह कन्या।’’
‘‘अभी देखा ही क्या है तुमने इसे। जिस कौशल से यह समस्त गृहस्थ का काम करती है, मैं तो देख-देखकर विस्मत मूक हो जाती हूँ।’’
‘‘गृहस्थ ही क्या हुआ ? पिता, पुत्र और लड़की।’’

‘‘काम तो हुए ही सब। खाना-पीना, स्वच्छता सजावट धरना-ढकना स्नान श्रृंगार, साधु अतिथि, सभी तो हुए ही। छोटा बालक नहीं है एक घर में। दासी केवल एक मैं हूँ, सब कुछ यह अपने हाथ से करती है। किसे देखा इसने ? किसने सिखाया इसे यह सब ?’’
‘‘विवाह योग्य तो हो गई है। कहीं चल रही है बातचीत ?’’
‘‘कहाँ से, अभी तो आए हैं। विदेश ही तो ठहरा यह इनका। जाति कुल का नहीं कोई यहाँ अपना, जान-पहचान नहीं किसी से। बड़ी कठिनता से अभी पिता को एक नौकरी मिली है टकसाल में। वृत्ति की विषम चिंता से अभी छुटकारा पाया है, अब कन्या के विवाह की चेष्टा होगी।’’
‘‘राजा के अन्तःपुर के योग्य है यह।’’

‘‘कोई संदेह नहीं इसमें, इसके पिता ईरान के राजा के प्रमुख सरदारों में से थे। दुर्भाग्यवश राजा के अनुग्रह से च्युत हो बैठे। जीविका से तो हाथ धोने ही पड़े। रातोंरात जीवन बचाने के लिए घर छोड़ प्रवास की शरण लेनी पड़ी। गर्व की गंध भी नहीं है इसमें दासी नहीं सहेली का सा व्यवहार करती है मेरे साथ। भीतर-बाहर एक सा कोई कृत्रिमता है नहीं उस व्यवहार में।’’
‘‘घर में अकेले ऊब उठती होगी बेचारी। पास-पड़ोस है कोई ?’’

‘‘नहीं, गृहस्थी के काम में से जो समय बचा लेती है, उसे पुस्तक पाठ और कला कौशल में बिताती है, इसके पिता कहते हैं, यह भाई से अवस्था में कम है, विद्या में नहीं।’’
मेहेर बड़ी सतर्कता से आगे बढ़ी। उसने अपने दोनों हाथों में दो कबूतर पकड़ लिए। 
इस समय पीछे से किसी ने कहा-‘‘दृढ़ता से पकड़ लो इन्हें, कहीं उड़ न जावें।’’

मेहेर ने लौटकर देखा। एक परम कांति और श्री-सम्पन्न नवयुवक विमुग्ध दृष्टि से उसे निहार रहा है। उसके कपोल रक्तिम हो उठे, नेत्र विनत। आबद्ध कपोतों का बाहुपाश शिथिल होने लगा। 

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121 दिमागी कसरतें

राजर्षि - रबीन्द्रनाथ टैगोर


Rajarshi (Hindi Novel) by Rabindranath Tagore

भुवनेश्वरी मंदिर का पत्थर का घाट गोमती नदी में जाकर मिल गया है। एक दिन ग्रीष्म-काल की सुबह त्रिपुरा के महाराजा गोविन्दमाणिक्य स्नान करने आए हैं, उनके भाई नक्षत्रराय भी साथ हैं। ऐसे समय एक छोटी लडकी अपने छोटे भाई को साथ लेकर उसी घाट पर आई। राजा का वस्त्र खींचते हुए पूछा, "तुम कौन हो?" राजा मुस्कराते हुए बोले, "माँ, मैं तुम्हारी संतान हूँ।" लडकी बोली, "मुझे पूजा के लिए फूल तोड़ दो ना!"

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Wednesday 21 October 2015

स्नातक - आर के नारायण

स्नातक जिसे मिस्टर बी ए के नाम से भी अनूदित किया जाता है 

आर. के. नारायण भारत के पहले ऐसे लेखक थे जिनके अंग्रेज़ी लेखन को विश्वभर में प्रसिद्धि मिली। अपनी रचनाओं के लिए रोचक कथानक चुनने और फिर उसे शालीन हास्य में पिरोने के कारण वे न जाने कितने ही पुस्तक प्रेमियों के पसंदीदा लेखक बन गए। 

इस उपन्यास की कहानी चंद्रन नाम के एक युवक के इर्द-गिर्द घूमती है जिसने बी.ए. पास कर लिया है और जिसे अब यह तय करना है कि जीवन में आगे क्या किया जाए। एक ओर उसके सामने अच्छी नौकरी कर अपना भविष्य संवारने का सवाल है तो दूसरी ओर अपने प्रेम को पाने की तड़प। दिलचस्प विषय के साथ ही किरदारों के जीवंत चित्रण और जगह-जगह हास्य के तड़के से यह उपन्यास बहुत रोचक बन गया है।

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मनुष्य (Manushya) by Bhati



Bhati ki Kahaniyon ka Sangrah

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Monday 19 October 2015

अतिक्रूर (Bhokal#5 by Raj Comics)


भोकाल सीरीज़ का पांचवा कॉमिक 

Bhokal aur Atikroor 
भुजंग देश के भोजपुर गाँव में फैली महामारी जिसकी वजह से गाँव छोड़कर नगर आना पड़ा गाँव के शमशान में काम करने वाले चांडाल कपालफोड़ और उसके पुत्र अतिक्रूर को. परन्तु नगर में आकर भी कम नहीं हुयी उनकी मुसीबतें. कपालफोड़ को एक शैतान गजोख ने धोखे से राजा न्यायप्रिय की हत्या के जुर्म में पहुंचवा दिया कारागार में. अतिक्रूर को मिला सहारा शमशान भूमियों के प्रभु मशानराज और गुरु कालकोपडा का जिन्होंने अतिक्रूर को दी असीम ताकत. अब अतिक्रूर को शैतान गजोख को ख़त्म कर छुड़ाना था अपने इत कपालफोड़ को. और गजोख को ख़त्म करने के लिए चाहिए था अमोद्य शस्त्र दंताक जिसकी तलाश में आतिक्रूर आ पहुंचा था तिलिस्मी ओलम्पाक. और फिर............?

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शूतान (Bhokal#4 by Raj Comics)


भोकाल सीरीज़ का चौथा कॉमिक 

Bhokal aur Shutan
हिप्ना गृह के प्रोका देश का नेक राजा टोस्कर परन्तु उसका साला कास्कोर बहुत नीच और बदमाश उसने अपने मित्र राक्षस डाकोर की सहायता से टोस्कर को दे दिया ज़हर। टोस्कर को बचाने के लिए जब राजवैद्य मेसमर को बुलवाया गया तो कास्कोर और डाकोर ने उसको भी घायल कर भेज दिया मोहनिद्रा अवस्था में। और उसके बेटों मीतान और जीतान की कर दी हत्या। बच गया तो सिर्फ छोटा बेटा शूतान जिसने डाकोर से बदला लेने के इरादे से शरण ली अपने पिता के गुरु पासेगुर के पास जिन्होंने शूतान को सिखाई अनोखी सम्मोहन कला। सम्मोहन विद्या सिखने के बाद शूतान को पता चला की डाकोर उसके पिता के शरीर को लेकर जा चुका है तिलिस्मी ओलम्पाक में। इस तरह डाकोर से बदला लेने की इच्छा लिए सम्मोहन सम्राट शूतान भी जा पहुंचा तिलिस्मी ओलम्पाक। और फिर..........?

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भोकाल (Bhokal#3 by Raj Comics)


भोकाल सीरीज़ का तीसरा कॉमिक 

Bhokal
परीलोक जहाँ हमला किया राक्षसराज बोझ और भरकम ने और मार-काट मचा उठा ले गए परीलोक की सभी परियों को। परीलोक न नन्हा राजकुमार आलोप किसी तरह बच गया अकेला और अपनी माँ परीरानी ओसिका को ढूंढ़ता हुआ जा पहुंचा परीलोक के महागुरु भोकाल के पास जो स्वयं भी राक्षसों के हमले से घायल हो गए थे। महागुरु भोकाल ने दी राजकुमार आलोप को अपनी प्रलयंकारी तलवार और ढाल और साथ में दी अपनी प्रलयंकारी शक्ति की जब भी वो पुकारेगा भोकाल का नाम तो मिल जाएगी उसको प्रलयंकारी शक्ति। और इस भोकाल शक्ति को लेकर आलोप जा पहुंचा था तिलिस्मी ओलम्पाक अपनी माँ की तलाश में। और फिर............?

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Sunday 18 October 2015

तिलिस्मी ओलंपाक (Bhokal#2 by Raj Comics)


भोकाल सीरीज़ का दूसरा कॉमिक

Bhokal aur Tilismi Olampak
महाबली फूचांग जिसने खौफनाक खेल रचकर ढूंढे 4 महारथी भोकाल, शूतान, अतिक्रूर और तुरीन और इन चारों को भेज दिया तिलिस्मी ओलम्पाक की खोज में। चारों महारथी आ पहुंचे अनजान और अद्भुत जगह जहाँ कदम-कदम पर करना पड़ रहा था उनको खतरों का सामना। तिलिस्मी ओलम्पाक की खोज में इन चारों की बहादुरी का लुत्फ़ उठा रहे थे पृथ्वी के सभी राजा-महाराजा। विकासनगर की नन्ही राजकुमारी भी तिलिस्मी ओलम्पाक में जाने की जिद लिए जा पहुंची फूचांग के पास जहाँ उसको पता चल गया फूचांग के षड्यंत्र का परन्तु फूचांग ने उस मासूम को भी भेज दिया खतरों के बीच तिलिस्मी ओलम्पाक में। और फिर........?

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खौफनाक खेल (Bhokal#1 by Raj Comics)

भोकाल सीरीज़ का पहला कॉमिक 

Bhokal aur Khaufnak Khel 
ओसाक ग्रह का बागी फुचांग जिसने महाराज गर्बोच की कर दी हत्या। महारानी रसिया राजकुमारी सोफिया को लेकर भाग निकली। बड़ी होने पर जब सोफिया जब फुचांग से बदला लेने की इच्छा लिए महर्षि गाजोबाजो के पास मदद के लिए गयी तो गाजोबाजो ने धोखे से उसको फुचांग के हवाले कर दिया। फुचांग को सोफिया की ज़रूरत थी क्योंकि उसकी मदद से ही वो तोड़ सकता था तिलिस्मी ओल्म्पाक, अब उसको थी ऐसे महावीरों की तलाश जिसको वो भेज सके तिलिस्मी ओल्म्पाक और इसलिए फुचांग ने विकासनगर के राजा विकास मोहन की मदद से आयोजन किया खौफनाक खेल का। और फिर.............

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कर्म (Karm) महासमर भाग 3- नरेंद्र कोहली


Mahasama part 3 (Karm) by Narendra Kohli

नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से संबद्ध हैं, किन्तु यह कृति का एक उपन्यास है-आज के एक लेखक का मौलिक सृजन।

कर्म
कुंती और पांडवों के प्रबल आग्रह के बाद भी कृष्ण और उनके साथी, युधिष्ठिर के युवराज्याभिषेक के पश्चात् हस्तिनापुर में नहीं रुके। कृष्ण ने केवल इतना ही बताया कि उन लोगों का मथुरा पहुँचना आवश्यक था। भीम की बहुत इच्छा थी कि बलराम अभी कुछ दिन और रुकते तो भीम का गदा-युद्ध और मल्ल-युद्ध का अभ्यास और आगे बढ़ता। बलराम को इसमें कोई आपत्ति भी नहीं थी। वे मथुरा लौटने के लिए बहुत आतुर भी नहीं दिखते थे; फिर भी कृष्ण के बिना, वे हस्तिनापुर में रुक नहीं सकते थे।

कृष्ण ने चाहे उन्हें कुछ नहीं बताया था, किंतु यादवों के मथुरा लौट जाने के पश्चात् युधिष्ठिर को भी चारों ओर से अनेक समाचार मिलने लगे थे।...जरासंध का सैनिक अभियान अब गुप्त नहीं रह गया था। विभिन्न राजसभाओं से राजदूत एक-दूसरे के पास जा रहे थे। पांचालों और यादवों में कोई प्रत्यक्ष संधि तो नहीं हुई थी; किंतु पांचालों ने जरासंध के सैनिक अभियानों में सम्मिलित होने की कोई तत्परता नहीं दिखायी थी। यादवों को वे अपने मित्र ही लग रहे थे। जरासंध ने हस्तिनापुर की राजसभा में कोई भी राजदूत नहीं भेजा था; किंतु यह समाचार प्रायः सबको ही ज्ञात हो गया था कि जरासंध ने काल यवन के साथ किसी प्रकार का कोई समझौता कर लिया था; और संभवतः वे दोनों एक ही समय में विभिन्न दिशाओं से मथुरा पर आक्रमण करने वाले थे। निश्चित रूप से यादवों के लिए यह विकट संकट की घड़ी थी।
‘‘हमें कृष्ण की सहायता के लिए जाना चाहिए।’’ अर्जुन ने कहा।

‘‘जाना चाहिए का क्या अर्थ! हमें चल ही पड़ना चाहिए।’’ भीम ने उग्र भाव से समर्थन किया, ‘‘मथुरा में वे लोग उन राक्षसों की नृशंस सेनाओं से जूझ रहे हों, और हम यहाँ शांति से बैठे रहें !’’
‘‘ठीक कहते हो तुम लोग।’’ युधिष्ठिर तो सहमत था; किंतु वह मुक्त भाव से कुछ कह नहीं पा रहा था।
‘‘क्या बात है पुत्र !’’ कुंती ने युधिष्ठिर के मनोभाव को कुछ-कुछ समझते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे मन में उत्साह नहीं है।’’

‘‘भैया के मन में युद्ध के लिए कभी भी कोई उत्साह नहीं होता।’’ नकुल ने धीरे से कहा, ‘‘वे सदा शांति ही चाहते हैं।’’
‘‘तो यह युद्ध भी तो शांति स्थापित करने के लिए ही है।’’ भीम ने उत्तर दिया, ‘‘हम इन दुष्टों का विरोध नहीं करेंगे, तो वे लोग संसार में कभी शांति रहने ही नहीं देंगे।’’

‘‘पितृव्य का विचार है कि अब, जब कि जरासंध मथुरा की ओर चल पड़ा है, और कांपिल्य को उसका भय नहीं रह गया है—पांचाल अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए, हस्तिनापुर पर आक्रमण कर सकते हैं इसलिए भीम और अर्जुन को हस्तिनापुर छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहिए।’’

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मधुशाला (Madhushala)- हरिवंशराय बच्चन

मधुशाला हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है।

प्रसिद्धि
मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली. मधुशाला खूब बिकी. हरसाल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए।

मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहलीबार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की. बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है।

मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय मधुबाला और मधुकलश का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। मधुशाला की रचना के कारण श्री बच्चन को " हालावाद का पुरोधा " भी कहा जाता है।

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मौत का ओलम्पिक (Dhruv#5 by Raj Comics)


ध्रुव सीरीज़ का पांचवा कॉमिक 

Dhruv aur Maut ka Olympic
राजनगर में शुरू हुआ विदेशी अपराधियों की प्रतियोगिता। जिसमे ये विदेशी आतंकवादी अंजाम दे रहे थे बेहद अजीबोगरीब और बचकाने अपराध। जिसको रोकने का ज़िम्मा उठाया सुपर कमांडो ध्रुव ने। और उन विदेशी आतंकवादियों का पीछा करते हुए जा पहुंचा उनके अड्डे तक जो बना हुआ था समुन्द्र की गहराइयों में। और फिर......................?

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स्वर्ग की तबाही (Dhruv#4 by Raj Comics)


ध्रुव सीरीज़ की चौथी कॉमिक 

Dhruv aur Swarg ki Tabahi
सुपर कमांडो ध्रुव, राजनगर में हुए भेड़िया-मानव के हमले के बाद उसके द्वारा छोड़े गए सुरागों के ज़रिये जा पहुंचा लक्षद्वीप के जंगलों में जहाँ नरसिंह नाम के पशु-मानव ने पशु-मानवों का दल बना रखा था। ध्रुव जा पहुंचा उनके किले तक पर पशु-मानवों द्वारा पकड़े जाने के बाद उसे कैद में डाल दिया गया। तब उसे उन पशु-मानवों की कैद छुड़ाने आई एक रहस्यमयी लड़की चंडिका। और फिर..............................?

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आदमखोरों का स्वर्ग (Dhruv#3 by Raj Comics)


ध्रुव सीरीज़ की तीसरी कॉमिक 

Dhruv aur Adamkhoron ka Swarg
राजनगर, जहाँ पर हमला हुआ एक अजीबोगरीब भेड़िया-मानव का, जिसको रोकने आ पंहुचा सुपर कमांडो ध्रुव। उस भेड़िया-मानव का राज़ जानने के लिए उसके द्वारा छोड़े गए सुरागों का पीछा करते हुए ध्रुव पहुँच गया लक्षद्वीप के जंगलों में जहाँ उसका सामना हुआ और भी खतरनाक पशु-मानवों से। मगर पशु-मानवों के सरदार नरसिंह द्वारा पकड़ा गया सुपर कमांडो ध्रुव। और फिर................................?

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रोमन हत्यारा (Dhruv#2 by araj Comics)



ध्रुव सीरीज की दूसरी कॉमिक

Super Commondo Dhruv aur Roman Hatyara
हजारों साल पहले के एक रोमन योद्धा का टोप खुदाई करते हुए मिला, जिसकी खासियत थी कि उसको पहनने वाले को मिल जाती थी अमानवीय ताकत। म्युसियम में रखा ये टोप हो गया चोरी, और शुरू हो गया टोप का रहस्य जानने वालों की हत्याओं का सिलसिला। अब इस रोमन हत्यारे को रोकने की ज़िम्मेदारी मिली सुपर कमांडो ध्रुव को। और फिर...................................?

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प्रतिशोध की ज्वाला (Dhruv#1 by Raj Comics)

सुपर कमांडो ध्रुव सीरीज़ की पहली कॉमिक

Supar Commando Dhruv aur Pratishodh ki Jwala
ज्यूपिटर सर्कस, जहाँ दर्शकों के मनोरंजन के लिए एक से बढ़कर एक कलाबाज़ अपने हैरतअंगेज़ कारनामे दिखाने से भी नहीं चुकते। इन्हीं कलाबाजों में कलाबाज़ श्याम और राधा का बेटा ध्रुव जिसका बचपन सर्कस के कलाकारों और जानवरों के बीच बीता और खुद भी एक बेमिसाल कलाबाज़ बना। पर ज्यूपिटर सर्कस की ये कामयाबी उसके प्रतिद्वंदी ग्लोब सर्कस को नहीं भायी, और उसने ज्यूपिटर सर्कस को तबाह कर दिया, सभी कलाबाज़ मारे रह गया सिर्फ ध्रुव। और उसने कसम खाई कि दुनिया से सभी बुरे लोगों को ख़त्म कर देगा। और फिर........................?

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हैरी पॉटर और रहस्यमयी तहखाना

जब से हैरी पॉटर गर्मी की छुट्टियों में घर लौटा था, तभी से उसके अंकल-आंटी उससे बहुत घटिया और बुरा व्यवहार कर रहे थे। वह एक बार फिर हॉगवर्ट्स जादू और तंत्र के विद्यालय में जाने के लिए छटपटा रहा था। परंतु तभी एक घरेलू जिन्न हैरी के पास आता है और उसे चेतावनी देता है कि अगर वह हॉगवर्ट्रस जाएगा, तो भयानक घटनाएँ होंगी, जिनमें उसकी जान भी जा सकती है।

और भयानक घटनाएँ होती भी हैं। हैरी को हॉगवर्ट्स में अपने दूसरे साल में बहुत से रोमांचक अनुभव होते हैं, जिनमें कार उड़ाने से लेकर क्विडिच के खेल में पहलवान से जान बचाने तक की घटनाएँ शामिल हैं। परंतु आतंक का असली माहौल तब शुरू होता है, जब रहस्यमयी तहखाना खुलता है और हॉगवर्ट्स के विद्यार्थी एक के बाद एक बेजान होने लगते हैं।

तहखाने को कौन खोल रहा है ? कहीं यह ड्रेको मैल्फॉल तो नहीं है, जिसके पिता शैतानी जादूगर वोल्डेमॉर्ट के खास सहयोगी थे ? कहीं यह हैग्रिड तो नहीं है, जिसके रहस्यमयी अतीत का अंततः पर्दाफाश हो जाता है ? या फिर कहीं यह वह विद्यार्थी तो नहीं है, जिस पर हॉगवर्ट्स में सबसे ज्यादा शक किया जा रहा है....खुद हैरी पॉटर !

हैरी पॉटर सीरीज़ की दूसरी पुस्तक
Harry Potter and Chamber of Secrets का हिंदी अनुवाद

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चंद्रकांता संतति भाग 2 (Chandrakanta Santati)

Chandrakanta Santati- 2 by Dewki Nandan Khatri

चंद्रकांता संतति लोक विश्रुत साहित्यकार बाबू देवकीनंदन खत्री का विश्वप्रसिद्ध ऐय्यारी उपन्यास है।


खत्री जी ने पहले चन्द्रकान्ता लिखा फिर उसकी लोकप्रियता और सफलता को देख कर उन्होंने कहानी को आगे बढ़ाया और 'चन्द्रकान्ता संतति' की रचना की। हिन्दी के प्रचार प्रसार में यह उपन्यास मील का पत्थर है। कहते हैं कि लाखों लोगों ने चन्द्रकान्ता संतति को पढ़ने के लिए ही हिन्दी सीखी। घटना प्रधान, तिलिस्म, जादूगरी, रहस्यलोक, एय्यारी की पृष्ठभूमि वाला हिन्दी का यह उपन्यास आज भी लोकप्रियता के शीर्ष पर है।


बाबू देवकीनंदन खत्री लिखित चन्द्रकान्ता संतति हिन्दी साहित्य का ऐसा उपन्यास है जिसने पूरे देश में तहलका मचाया था। इस उपन्यास की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इसे पढ़ने के लिए हजारों गैर-हिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी। चंद्रकांता संतति उपन्यास को आधार बनाकर निरजा गुलेरी ने इसी नाम से टेलीविजन धारावाहिक बनाई। यह धारावाहिक दूरदर्शन के सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिकों में शुमार हुई।


"चन्द्रकान्ता" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" में यद्यपि इस बात का पता नहीं लगेगा कि कब और कहाँ भाषा का परिवर्तन हो गया परन्तु उसके आरम्भ और अन्त में आप ठीक वैसा ही परिवर्तन पायेंगे जैसा बालक और वृद्ध में। एक दम से बहुत से संस्कृत शब्दों का प्रचार करते तो कभी सम्भव न था कि उतने संस्कृत शब्द हम ग्रामीण लोगों को याद करा देते। इस पुस्तक के लिए वह लोग भी बोधगम्य उर्दू के शब्दों को अपनी विशुद्ध हिन्दी में लाने लगे जो आरम्भ में इसका विरोध करते थे।


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नागराज और शांगो (Nagraj#5 by Raj Comics)

नागराज सीरीज़ की पांचवी कॉमिक

नागराज, जो राजकुमारी ताकाशी को उसका राज्य वापिस दिलाने के लिए जा भिड़ा आतंकवादी सरगना चांगो और बागी सबाटो से। और इसके लिए उसे मदद की ज़रुरत पड़ी राजकुमारी ताकाशी के गुरु सुजुकी और उसके शिष्यों की। सुजुकी ने उनकी मदद के लिए बुलवाया अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य शांगो को पर चांगो के दुश्मनों ने ख़त्म कर डाला सुजुकी और उनके शिष्यों को और शांगो ग़लतफ़हमी में नागराज को समझ बैठा सुजुकी का हत्यारा और अपना सबसे बड़ा दुश्मन। और फिर....................................?

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नागराज की हांगकांग यात्रा (Nagraj#4 by Raj Comics)


नागराज सीरीज़ का चौथा कॉमिक


नागराज, आसाम से बुलडाग का खात्मा करने के बाद जुर्म और आतंकवाद को ख़त्म करने निकल पड़ा और जा पहुंचा हांगकांग जहाँ पर कब्ज़ा कर रखा था साबाटो और चांगो नाम के बागियों ने और उनसे बचकर भागी-भागी फिर रही राजकुमारी ताकाशी के साथ मिलकर नागराज ने की एक और जंग की शुरुआत। और फिर......................?

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नागराज का बदला (Nagraj#3 by Raj Comics)

नागराज सीरीज़ का तीसरा कॉमिक


"नागराज" प्रोफ़ेसर नागमणि का अविष्कार, बाबा गोरखनाथ के आशीर्वाद से निकल पड़ा दुनिया से जुर्म और आतंकवाद को ख़त्म करने और जा टकराया कुख्यात अपराधी बुलडाग से। पर बुलडाग ने बना दी "नागराज की कब्र", नागराज भी बच निकला बुलडाग की बनाई कब्र से और जा पहुंचा बुलडाग के पास उसके एक-एक जुर्म का बदला लेने। और फिर.....................?

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नागराज की कब्र (Nagraj#2 by Raj Comics)



नागराज सीरीज का दूसरा कॉमिक

"नागराज" जिसे प्रोफ़ेसर नागमणि ने बनाया था दुनिया में आतंक फ़ैलाने के लिए लेकिन बाबा गोरखनाथ ने नागराज को सच्चाई के रास्ते में लाकर जुर्म और आतंकवाद के खिलाफ खड़ा कर दिया। और नागराज चल पड़ा मानवता के दुश्मनों का खात्मा करने। और सबसे से पहले उसी बुलडाग को नेस्तोनाबूद करने जा पहुंचा जिसने उसे आतंकवाद फ़ैलाने के लिए सबसे पहले ख़रीदा था। और नागराज की इस जंग में उसका साथ दिया रोमो नाम के ऐसे जाबांज ने जो खुद कभी बुलडाग के लिए काम किया करता था। दोनों जा पहुंचे बुलडाग के किले पर उसे ख़त्म करने। और फिर................................?

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नागराज (Nagraj) - (Nagraj#1 by Raj Comics)




नागराज श्रंखला की पहली कॉमिक

प्रोफ़ेसर नागमणि जिसने दुनिया भर के आतंकवादियों और जुर्म की दुनिया के सरगनाओं को अपने बनाये एक नए हथियार की नीलामी के लिए बुलाया। एक ऐसा हथियार जो अकेला पूरी दुनिया को हिला कर रख सकता था। और वो हथियार था "नागराज" नाम का एक ऐसा मानव-नाग जिसके पास थी असीमित नाग शक्तियां। उस नीलामी में नागराज को सबसे पहले किराये पर लिया आसाम में अपनी जुर्म की बादशाहत चला रहे माफिया डोन बुलडाग ने और वो नागराज को लेकर जा पहुंचा आसाम में तबाही मचाने। और फिर ......................?

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Saturday 17 October 2015

शेखचिल्ली की कहानियां (Shekhchilli)


शेखचिल्ली को भला कौन नहीं जानता। अरे वही शेखचिल्ली जो सपने में ही ताजमहल खड़ा कर देता था। हममे से हर कोई कभी न कभी शेखचिल्ली जरूर बना होगा। शेखचिल्ली की मनोरंजक कहानियों का संग्रह।


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अछूत - दया पवार

महाराष्ट्र के एक दलित नेता पर आधारित राजनैतिक और सामाजिक उपन्यासउपन्यास। अवश्य पढ़ें

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Thursday 15 October 2015

पांच गधे (5 Gadhe)- रांगेय राघव



पांच गधे रांगेय राघव की चुनिंदा कहानियों का संकलन है।

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Wednesday 14 October 2015

कालसुन्दरी (Kaalsundari)



कालसुन्दरी एक मनोरंजक कहानी संग्रह है। इसके लेखक श्री ओंकार नाथ श्रीवास्तव हैं।

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मानसरोवर -2 (Mansarovar 2)- प्रेमचंद





प्रेमचंद की सम्पूर्ण कहानियों का संग्रह 8 भाग में

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Tuesday 13 October 2015

हैरी पॉटर 1 (पारस पत्थर) Harry Potter



न तो क्विडिच टीम का हीरो था, न ही जादुई झाड़ू पर सवार होकर हवा में उड़ते हुये पॉइंट बनाता था। न तो वह मंत्र जानता था, न ही कभी उसने अंडे से ड्रैगन निकलते देखा था और न ही कभी उसने अदृश्य चोगा पहना था।
उसने अपने अंकल-आंटी यानी डर्स्ली पति-पत्नी और उनके मोटे, दु्ष्ट बेटे डडली के साथ रहते हुये जीवन भर दुख झेला था। कमरे के नाम पर हैरी के पास थी सीढ़ियों के नीचे बनी एक छोटी अलमारी और ग्यारह सालों में उसका जन्मदिन कभी किसी ने नहीं मनाया था।
परंतु यह सब बदल जाता है जब एक भीमकाय आदमी उसके नाम की एक रहस्यमय चिट्ठी लेकर आता हैः जिसमें एक ऐसी अविश्वसनीय जगह पर जाने का आमंत्रण है जिसे हैरी-और उसकी कहानी पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति-भूला नहीं पायेगा।
क्योंकि वहाँ उसे दोस्त मिलते हैं, हवाई खेल मिलते हैं, क्लास से लेकर भोजन तक हर चीज में जादू मिलता है। और साथ में मिलता है नाम कमाने का महान अवसर भी, जो उसका इंतजार कर रहा है, बशर्ते हैरी मुठभेड़ में बच सके।



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महासमर भाग 2 (अधिकार) Mahasar - नरेंद्र कोहली



नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’ घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से संबद्ध हैं, किन्तु यह कृति का एक उपन्यास है-आज के एक लेखक का मौलिक सृजन।
 'अधिकार' की कहानी हस्तिनापुर में पांडवों के शैशव से आरम्भ हो कर वारणावत के अग्निकांड पर जा कर समाप्त होती है । वस्तुत: यह खंड अधिकारों की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरंतर होने वाले षड्यंत्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है ।

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Monday 12 October 2015

नरेंद्र मोहिनी (Narendra Mohini)- देवकी नंदन खत्री

बाबू देवकीनन्दन खत्री (29 जून 1861 - 1 अगस्त 1913) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोंडा, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। 'भूतनाथ' को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस किताब का रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। जितने हिन्दी पाठक उन्होंने (बाबू देवकीनन्दन खत्री ने) उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं।

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भूतनाथ भाग 3 (Bhutnath 3)-देवकीनंदन खत्री


भूतनाथ, इक्कीस भाग व सात खण्डों में, ‘चन्द्रकान्ता’ व ‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ की ही परम्परा और श्रृंखला का, बाबू देवकीनन्दन खत्री विरचित एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहुचर्चित प्रसिद्ध उपन्यास है। ‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ में ही बाबू देवकीनन्दन खत्री के अद्भुत पात्र भूतनाथ (गदाधर सिंह) ने अपनी जीवनी (जीवन-कथा) प्रस्तुत करने का संकल्प किया था। यह संकल्प वस्तुतः लेखक का ही एक संकेत था कि इसके बाद ‘भूतनाथ’ नामक बृहत् उपन्यास की रचना होगी। देवकीनन्दन खत्री की अद्भुत कल्पना-शक्ति को शत-शत नमन है। लाखों करोड़ों पाठकों का यह उपन्यास कंठहार बना हुआ है। जब यह कहा जाता है कि ‘चन्द्रकान्ता’ और ‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ उपन्यासों को पढ़ने के लिए लाखों लोगों ने हिन्दी भाषा सीखी तो इस कथन में ‘भूतनाथ’ भी स्वतः सम्मिलित हो जाता है क्योंकि ‘भूतनाथ’ उसी तिलिस्मी और ऐयारी उपन्यास परम्परा ही नहीं, उसी श्रृंखला का प्रतिनिधि उपन्यास है। कल्पना की अद्भुत उड़ान और कथारस की मार्मिकता इसे हिन्दी साहित्य की विशिष्ट रचना सिद्ध करती है। मनोरंजन का मुख्य उद्देश्य होते हुए भी इसमें बुराई और असत् पर अच्छाई और सत् की विजय का शाश्वत विधान ऐसा है जो इसे एपिक नॉवल (Epic Novel) यानी महाकाव्यात्मक उपन्यासों की कोटि में लाता है। ‘भूतनाथ’ का यह शुद्ध पाठ-सम्पादन और भव्य नवप्रकाशन, आशा है, पाठकों को विशेष रुचिकर प्रतीत होगा।


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