Thursday 3 December 2015

यथा संभव (शरद जोशी)

Yatha Sambhav (Sharad Joshi)

प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी हास्य व्यंग्य जगत के महत्वपूर्ण स्तम्भ रहे हैं। यथा संभव उनकी अभूतपूर्व कृतियों में से एक है।


व्यंग्य शब्द को साहित्य से जोड़ने अर्थात् व्यंग्य को साहित्य का दर्जा दिलाने में जिन इने-गिने लेखकों की भूमिका रही है उनमें शरद जोशी का नाम सबसे पहले आने वाले लेखकों में से एक है। अपनी चिर-परिचित शालीन भाषा में वे यही कह सकते थे कि-‘मैंने हिन्दी में व्यंग्य साहित्य का अभाव दूर करने की दिशा में ‘यथासम्भव’ प्रयास किया है।’ पर सच तो यह है कि उन्होंने इस दिशा में निश्चित योगदान दिया-गुणवत्ता और परिमाण, दोनों दृष्टियों से। उन्होंने नाचीज विषयों से लेकर गम्भीर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मसलों तक सबकी बाकायदा खबर ली है। रोज़मर्रा के विषयों में उनकी प्रतिक्रिया इतनी सटीक होती कि पाठक का आन्तरिक भावलोक प्रकाशित हो उठता। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शरद जोशी ने हिन्दी के गम्भीर व्यंग्य को लाखों लोगों तक पहुँचाया।


प्रस्तुत कृति ‘यथासम्भव’ में उनके सम्पूर्ण साहित्य में से सौ बेहतरीन रचनाएँ, स्वयं उनके ही द्वारा चुनी हुई, संकलित हैं। 


उनका यह अपूर्व अनोखा संग्रह व्यंग्य-साहित्य के पाठकों के लिए अपरिहार्य है। दूसरे शब्दों में, ‘यथासम्भव’ का हवाला दिये बिना आधुनिक भारतीय व्यंग्य साहित्य की चर्चा करना ही सम्भव नहीं है।


डाउनलोड करें- यथा संभव

4 comments:

  1. बन्धु !
    यथासंभव के लिये आभार .
    अनुरोध,
    प्रचार पृष्ठ के मध्य में न करके ऊपर या नीचे करें .ज्यादा बेहतर होता कि केवल प्रथम व अंतिम पृष्ठ पर करते .पुस्तक पढ़ने में असुविधा होती है.

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  2. यथासंभव किसी टिप्पणी की मोहताज नहीं है .
    फिर भी,
    अद्वितीय.

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  3. jaydeep bhai, agar aapke paas Acharya chatursen ka Vayam Raksham : hai please available karwaiye, Hindi sahitya me ye novel bhi bahut durlabh hai aur online available nahi hai,,,,,, Dhanyavad

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    1. प्रिंसप्रिंस जी
      जल्द ही आपको वयं रक्षामः प्राप्त होगी

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