Monday 5 October 2015

नागाओं के रहस्य (Nagaon ke Rahasya)




शिव! महादेव। देवों के देव। बुराई के विनाशक। भावुक प्रेमी। भीषण योद्धा। सम्पूर्ण नर्तक। चमत्कारी मार्ग दर्शक। सर्व-शक्तिमान, फिर भी सच्चरित्र। कुषाग्रबुद्धि और साथ ही साथ उतनी ही शीघ्रता और भयंकर रूप से क्रुद्ध होने वाले।

कई शताब्दियों से – विजेता, व्यापारी, विद्वान्, शासक, पर्यटक – जो भी हमारी भूमि पर आए, उनमें से किसी ने भी यह विश्वास नहीं किया था कि ऐसे महान् व्यक्ति सचमुच में ही अस्तित्व में थे। उनकी कल्पना रही थी कि वे पौराणिक गाथाओं के कोई ईश्वर रहे होंगे, जिनका अस्तित्व मात्र मानवीय कल्पनाओं के क्षेत्राधिकार में ही संभव हो सकता था। दुर्भाग्यवश यह विश्वास ही हमारा प्रचलित ज्ञान बन गया।

लेकिन अगर हम गलत हैं? अगर भगवान् शिव एक अच्छी कल्पना से कपोल-कल्पित नहीं थे, बल्कि रक्त एवं मांस के बने एक व्यक्ति थे। आपके और मेरे समान ही। ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्म के कारण ईश्वर के समान हो गए हों। यही इस शिव रचना त्रय का आधार वाक्य है जो ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ काल्पनिक कथा का मिश्रण कर प्राचीन भारत की पौराणिक धरोहर की व्याख्या करता है।

यह पुस्तक भगवान् शिव को एवं उनके जीवन को एक श्रद्धांजलि है, जो हमें ढेर सारी शिक्षाएँ देती है। वे शिक्षाएँ जो समय एवं अज्ञानता की गहराई में खो गई थीं। वह शिक्षा जिससे हम सभी लोग एक बेहतर मनुष्य बन सकते हैं। वह शिक्षा कि प्रत्येक जीवित व्यक्ति में एक संभावित ईश्वर का वास होता है। हमें मात्र इतना करना है कि स्वयं को सुनना है।

मेलूहा के मृत्युंजय रचना त्रय की प्रथम पुस्तक है जो एक असाधारण नायक की जीवन यात्रा का वृत्तांत है। यह दूसरी पुस्तक है, जिसका नाम है – नागाओं का रहस्य। इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद विश्वजीत ‘सपन’ ने किया है।


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