Wednesday 11 November 2015

पृच्छन्न (महासमर भाग 6) - नरेंद्र कोहली


Prichhann (Mahasamar 6) by Narendra Kohli 

महाकाल असंख्य वर्षों की यात्रा कर चुका है, किन्तु न मानव की प्रकृति परिवर्तित हुई है, न प्रकृति के नियम। उसका ऊपरी आवरण कितना भी भिन्न क्यों न दिखाई देता हो, मनुष्य का मनोविज्ञान आज भी वही है, जो सहस्त्रों वर्ष पूर्व था।

बाह्य संसार के सारे घटनात्मक संघर्ष वस्तुतः मन के सूक्ष्म विकारों के स्थूल रूपांतरण मात्र हैं। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर जाए, तो ये मनोविकार, मानसिक विकृतियों में परणीत हो जाते हैं। दुर्योधन इसी प्रक्रिया का शिकार हुआ है। अपनी आवश्यकता भर पाकर वह संतुष्ट नहीं हुआ। दूसरों का सर्वस्व छीनकर भी वह शांत नहीं हुआ। पांडवों की पीड़ा उसके सुख की अनिवार्य शर्त थी। इसलिए वंचित पांडवों को पीड़ित और अपमानित कर सुख प्राप्त करने की योजना बनाई गई। घायल पक्षी को तड़पाकर बच्चों को क्रीड़ा का-सा-आनन्द आता है। मिहिर कुल को अपने युद्धक गजों को पर्वत से खाई में गिरकर उनके पीड़ित चीत्कारों को सुनकर असाधारण सुख मिला था। अरब शेखों को ऊँटों की दौड़ में, उनकी पीठ पर बैठे बच्चों की अस्थियों और पीड़ा से चिल्लाने को देख-सुनकर सुख मिलता है। महासमर-6 में मनुष्य का मन अपने ऐसे ही प्रच्छन्न भाव उद्घाटित कर रहा है।


दुर्वासा ने बहुत तपस्या की है, किंतु न अपना अहंकार जीता है न क्रोध। एक अहंकारी और परपीड़क व्यक्तित्व, प्रच्छन्न रूप से उस तापस के भीतर विद्यमान है। वह किसी के द्वार पर आता है, तो धर्म देने के लिए नहीं। वह तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों को वरदान देने के लिए और सतोगुणी लोगों को वंचित करने के लिए आता है। पर पांडव पहचानते हैं कि संन्यासियों का समूह, जो उनके द्वार पर आया है सात्विक संन्यासियों का समूह नहीं है। यह एक प्रच्छन्न टिड्डी दल है जो उनके अन्न भण्डार को समाप्त करने आया है। ताकि जो पांडव दुर्योधन के शस्त्रों से न मारे जा सके, वे अपनी भूख से मर जाएँ।


दुर्योधन के सुख में प्रच्छन्न रूप से बैठा है, दुख और युधिष्ठिर की अव्यावहारिकता में प्रच्छन्न रूप से बैठा है धर्म। यह माया की सृष्टि है जो प्रकट रूप में दिखाई देता है, वह वस्तुतः होता नहीं, और जो वर्तमान है वह कहीं दिखाई नहीं देता।

पांडवों का आज्ञातवास, महाभारत-कथा का एक बहुत आकर्षक स्थल है। दुर्योधन की ग्रध्र दृष्टि से पांडव कैसे छिपे रह सके ? अपने आज्ञातवास के लिए पांडवों ने विराटनगर को ही क्यों चुना ? पांडवों के शत्रुओं में प्रच्छन्न मित्र कहां थे और मित्रों में प्रच्छन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ?...ऐसे ही अनेक प्रश्नों को समेटकर आगे बढ़ती है, महासमर के इस छठे खंड ‘प्रच्छन्न की कथा। पाठक पूछता है कि यदि उसे महाभारत की ही कथा पढ़नी है तो वह व्यास कृत मूल महाभारत ही क्यों न पढ़े, नरेन्द्र कोहली का उपन्यास क्यों पढ़े ? वह यह भी पूछता है कि उसे उपन्यास ही पढ़ना है तो वह समसामायिक उपन्यास क्यों न पढ़े, नरेन्द्र कोहली का ‘महासमर’ ही क्यों पढ़े ??


‘महाभारत’ हमारा काव्य भी है, इतिहास भी और आध्यात्म भी। हमारे प्राचीन ग्रंथ शाश्वत सत्य की चर्चा करते हैं। वे किसी कालखंड के सीमित सत्य में आबद्ध नहीं हैं, जैसा कि यूरोपीय अथवा यूरोपीयकृत मस्तिष्क अपने अज्ञान अथवा बाहरी प्रभाव को मान बैठा है। नरेन्द्र कोहली ने न महाभारत को नए संदर्भों में लिखा है, न उसमें संशोधन करने का कोई दावा है। न वे पाठक को महाभारत समझाने के लिए उसकी व्याख्या मात्र कर रहे हैं। वे यह नहीं मानते कि महाकाल की यात्रा खंडों में विभाजित है, इसलिए जो घटनाएँ घटित हो चुकीं, उनसे अब हमारा कोई संबंध नहीं है। न तो प्रकृति के नियम बदले हैं, न मनुष्य का मनोविज्ञान। मनुष्य की अखंड कालयात्रा को इतिहास खंडों में बाँटे तो बाँटे, साहित्य उन्हें विभाजित नहीं करता, यद्यपि ऊपरी आवरण सदा ही बदलते रहते हैं।


महाभारत की कथा भारतीय चिंतन और भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। नरेन्द्र कोहली ने उसे ही अपने उपन्यास का आधार बनाया है। महासमर की कथा मनुष्य के उस अनवरत युद्ध की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरंतर करना पड़ता है। वह उस संसार में रहता है, जिसमें चारों ओर लाभ और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं। बाहर से अधिक उसे अपने भीतर लड़ना पड़ता है। परायों से अधिक उसे अपनों से लड़ना पड़ता है। और वह अपने धर्म पर टिका रहता है तो वह इसी देह में स्वर्ग जा सकता है। इसका आश्वासन ‘महाभारत’ देता है। लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरूद्ध धर्म के इस सात्विक युद्ध को नरेन्द्र कोहली एक आधुनिक और मौलिक उपन्यास के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।... और वह है ‘महासमर’। ‘प्रच्छन्न’ महासमर का छठा खंड है। आप इसे पढ़ें और स्वयं अपने आप से पूछें, आपने इतिहास पढ़ा ? पुराण पढ़ा ? धर्मग्रंथ पढ़ा अथवा एक रोचक उपन्यास ? इसे पढ़कर आपका मनोरंजन हुआ ? आपका ज्ञान बढ़ा ?अथवा आपका विकास हुआ ? क्या आपने इससे पहले कभी ऐसा कुछ पढ़ा था ?

डाउनलोड करें- पृच्छन्न

4 comments:

  1. Dhanyavad bhai ,,,,lagta hai Diwali ki chhutti mana k laute ho,,, long time,,,,and waiting for next part to complete this series,,,,

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  2. ThanK you very very very muchhh,,,,,,,,,,,,,,
    When will you upload the next part ???

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  3. ThanK you very very very muchhh,,,,,,,,,,,,,,
    When will you upload the next part ???

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