Friday 30 October 2015

ज़िद्दी - इस्मत चुगताई


Ziddi - Ismat Chugtai

इस उपन्यास पर हिंदी फ़िल्म बनी थी

‘जिद्दी’ उपन्यास एक दुःखद प्रेम कहानी है जो हमारी सामाजिक संरचना से जुड़े अनेक अहम सवालों का अपने भीतर अहाता किये हुए है। प्रेम संबंध और सामाजिक हैसियत के अन्तर्विरोध पर गाहे-बगाहे बहुत कथा कहानियाँ लिखा जाती रहीं हैं लेकिन ‘जिद्दी’ उपन्यास इनसे अलग विशिष्टता रखता है।
यह उपन्यास हरिजन प्रेम का पाखण्ड करने वाले राजा साहब का पर्दाफाश भी करता है, और साथ ही औरत पर औरत के जुल्म की दास्तान भी सुनाता है।

‘जिद्दी’ उपन्यास के केन्द्र में दो पात्र हैं-पूरन और आशा। पूरन एक अर्द्ध-सामंतीय परिवेश में पला-बढ़ा नौजवान है जिसे बचपन से वर्गीय श्रेष्ठता बोध का पाठ पढाया गया है। कथाकार ने पूरन के चरित्र का विकास ठीक इसके विपरात दिशा मे किया है। उसमें तथाकथित राजसी वैभव से मुक्त अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के निर्माण की जिद है और वह एक जिद्दी की तरह अपने आचरण को ढाल लेता है। आशा उसके खानदान खिलाई (बच्चों को खिलाने वाली स्त्री) की बेटी है। नौकरानी आशा के लाजभरे सौन्दर्य का पूरन आसक्त हो जाता है। वर्गीय हैसियत का अन्तर इस प्रेम की त्रासदी में बदल जाता है। पूरन की जिद उसे मृत्यु की ओर धकेलती है। पारिवारिक दबाववश उसका विवाह शान्ता के साथ हो जाता है और इस तरह दो स्त्रियों-आशा और शान्ता का जीवन एक साथ उजड़ जाता है। यहीं इस्मत चुगताई स्त्री के सुखों और दुःखों को पुरुष से अलग करके बताती है, ‘‘मगर औरत ? वो कितनी मुख्तविफ होती है। उसका दिल हर वक्त सहमा हुआ रहता है। हँसती है तो डर के, मुस्कराती है तो झिझक कर।’’ दोनों स्त्रियाँ इसी नैतिक संकोच की बलि चढती हैं। 

जिद्दी के रूप में पूरन के व्यक्तित्व को बड़े ही कौशल के साथ उभारा गया है। इसके अलावा भोला की ताई, चमकी, रंजी आदि के घर के नौंकरों और नौकरानियों की संक्षिप्त उपस्थिति भी हमें प्रभावित करती है। इस्मत अपने बातूनीपन और विनोदप्रियता के लहजे के सहारे चरित्रों में ऐसे खूबसूरत रंग भरती हैं कि वे सजीव हो उठते हैं एक दुःखान्त उपन्यास में भोला की ताई जैसे हँसोड़ और चिड़चिड़े पात्र की सृष्टि कोई बड़ा कथाकार ही कर सकता है। छोटे चरित्रों को प्रभावशाली बनाना मुश्किल काम है।

‘जिद्दी’ उपन्यास में इस्मत का उद्धत अभिव्यक्ति और व्यंग्य का लहजा बदस्तूर देखा जा सकता है। बयान के ऐसे बहुत से ढंग और मुहावरे उन्होंने अपने कथात्मक गद्य में सुरक्षित कर लियें हैं जो अब देखें-सुने नहीं जाते। इस उपन्यास में ऐसी कामयाब पाठनीयता है कि हिन्दी पाठक इसे एक ही बार में पढ़ने का आनन्द उठाना चाहेंगे।


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