Saturday 31 October 2015

अंतराल (महासमर भाग 5)- नरेंद्र कोहली


Antral (Mahasamar - 5) by Narendra Kohli 

‘महासमर’ का यह पाँचवा खंड है- ‘अंतराल’।
इस खंड में, द्यूत में हारने के पश्चात पांडवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत-श्रृंग पर वनवास करने गई थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गांधारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।....किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों उनके साथ में वह हस्तिनापुर मे विदुर के घर रही। क्यों ? 

पांडवों की पत्नियाँ-देविका, बलधरा, सुभद्रा, करेणुमति और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गई; किन्तु द्रौपदी कांपिल्य नहीं गई। वह पांडवों के साथ वन में ही रही। क्यों ?
कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पांडवों का राज्य छीनकर, पांडवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों ? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पांडव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे ? 

इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे ? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था ? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ देह के साथ कोई नहीं जा सकता ? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे ? अपनी पिछली त्राया में तीन-तीन विवाह करने वाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया ?

इस प्रकार अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर ‘अंतराल’ में प्रस्तुत किए गए हैं। यादवों की राजनीति, पांडवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदांधता संबंधी यह रचना पाठक के सम्मुख इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह-नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही संभव है ! प्रख्यात कथाओं का पुनर्सृजन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता; वह उनका युग-साक्षेप अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतंत्र अस्तित्व होता है; वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण ! मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।

मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर-देश, समाचार-पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है; और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की संम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के ‘प्राचीन’ में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की संभावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो, एक खंड सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सृजक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खंड का अंग होते हुए भी, खंडों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।

नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से संबद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है-आज के लेखक का मौलिक सृजन !

डाउनलोड करें- अंतराल

2 comments:

  1. thanX bro ,than k yo so much,,,,
    baaki k parts v ja;d se jald upload kare......

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  2. Jaideep ji......jb bhi mahasamar ka koi part download karne ki koshish karta hu....ek new page khul jata he....jispe likha hota he earn money by short links....nd kuch bhi download nai ho paya

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