यह हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं।
कहानी का नायक चंदर सुधा से प्रेम तो करता है, लेकिन सुधा के पापा के उस पर किए गए अहसान और व्यक्तित्व पर हावी उसके आदर्श कुछ ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि वह चाहते हुए भी कभी अपने मन की बात सुधा से नहीं कह पाता। सुधा की नजरों में वह देवता बने रहना चाहता है और होता भी यही है। सुधा से उसका नाता वैसा ही है, जैसा एक देवता और भक्त का होता है। प्रेम को लेकर चंदर का द्वंद्व उपन्यास के ज्यादातर हिस्से में बना रहता है। नतीजा यह होता है कि सुधा की शादी कहीं और हो जाती है और अंत में उसे दुनिया छोड़कर जाना पड़ता है।
कहानी की एक और पात्र है पम्मी, जिसके मुंह से लेखक ने जिंदगी, प्रेम, वासना, विवाह आदि से जुड़ी तमाम ऐसी बातें कहलवाई हैं, जिन पर पाठक सोचने को मजबूर हो जाता है। एक प्रसंग में पम्मी चंदर से कहती है - कितना अच्छा हो, अगर आदमी हमेशा संबंधों में एक दूरी रखे। सेक्स न आने दे। ये सितारे हैं, देखो कितने नजदीक हैं। करोड़ों बरस से साथ हैं, लेकिन कभी भी एक-दूसरे को छूते तक नहीं, तभी तो संग निभ जाता है। बस ऐसा हो कि आदमी अपने प्रेमास्पद को अपने निकट लाकर छोड़ दे, उसको बांधे न। कुछ ऐसा हो कि होंठों के पास खींचकर छोड़ दे...' उल्लेखनीय है कि अलौकिक प्रेम पर कुछ ऐसे ही विचार बाद के सालों में अमृता प्रीतम ने भी रखे, जिनका संदेश भी यही है कि कोई तुम्हें चाहे तो दिल से चाहे, पास आए, लेकिन तुम्हें छू न पाए, जो तुम्हारे एकाकी पर आक्रांत न हो और जिसके साथ रहकर भी तुम्हारे स्व को कोई ठेस न लगे।
पम्मी के साथ चंदर के अंतरंग लम्हों का गहराई से चित्रण करते हुए भी लेखक ने पूरी सावधानी बरती है। पूरे प्रसंग में थोड़ा सेक्सुअल टच तो है, पर वल्गैरिटी कहीं नहीं है, उसमें सिहरन तो है, लेकिन यह पाठकों को उत्तेजित नहीं करता। लेखक खुद इस उपन्यास के कितने नजदीक हैं, इसका अंदाजा उनके इस कथन से लगाया जा सकता है - मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है, जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे मैं प्रार्थना मन ही मन दोहरा रहा हूं, बस |
प्रसिद्ध पंक्तिया
इस पुस्तक की कुछ उल्लेखनिए पंक्तियाँ।
छह बरस से साठ बरस तक की कौन-सी ऐसी स्त्री है, जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाए।
बहलावे के लिए मुस्कानें ही जरूरी नहीं होती हैं, शायद आंसुओं से मन जल्दी बहल जाता है।
अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है।
ऐसे अवसरों पर जब मनुष्य को गंभीरतम उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, तब स्वभावत: आदमी के चरित्र में एक विचित्र-सा निखार आ जाता है।
जब भावना और सौंदर्य के उपासक को बुद्धि और वास्तविकता की ठेस लगती है, तब वह सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता है।
बुद्धि और शरीर बस यही दो आदमी के मूल तत्व हैं। हृदय तो दोनों के अंत:संघर्ष की उलझन का नाम है।
मनुष्य का एक स्वभाव होता है। जब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक पूरी तरह विनम्र होकर उसे स्वीकार करे। अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखाता है तो आदमी अपनी दानवृत्ति और दयाभाव भूलकर नृशंसता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है।
अगर आप किसी औरत के हाथ पर हाथ रखते हैं तो स्पर्श की अनुभूति से ही वह जान जाएगी कि आप उससे कोई प्रश्न कर रहे हैं, याचना कर रहे हैं, सांत्वना दे रहे हैं या सांत्वना मांग रहे हैं। क्षमा मांग रहे हैं या क्षमा दे रहे हैं, प्यार का आरंभ कर रहे हैं या समाप्त कर रहे हैं? स्वागत कर रहे हैं या विदा दे रहे हैं? यह पुलक का स्पर्श है या उदासी का चाव और नशे का स्पर्श है या खिन्नता और बेमनी का?
अगर पुरुषों के होंठों में तीखी प्यास न हो, बाहुपाशों में जहर न हो, तो वासना की इस शिथिलता से नारी फौरन समझ जाती है कि संबंधों में दूरी आती जा रही है। संबंधों की घनिष्ठता को नापने का नारी के पास एक ही मापदंड है, चुंबन का तीखापन।
गुनाहों का देवता
अगर किसी भी सज्जन को कोई विशेष पुस्तक चाहिए तो कृपया बताएं। आपको वह पुस्तक उपलब्ध करने की कोशिश करेंगे।
ReplyDeleteJay deep Ji kya Aap khuahwant singh ke novel uplabhd karde
Deleteतमाम किताबें डाऊनलोड नहीं हो रही है
ReplyDeleteनमस्ते श्रीमान जी! पहले तो आपका कोटि कोटि धन्यवाद,इतना सुन्दर व्लाग वनाने के लिए।मुझे बाबू देवकीनंदन खत्री के पुत्र श्री दुर्गा प्रसाद खत्री विरचित रोहतासमठ उपन्यास चाहिए वो भी सम्पूर्ण यानी छ: भागों सहित। शुरू के तीन भाग तो हैं हमारे पास।लेकिन अन्तिम तीन भाग नहीं हैं।
ReplyDeleteSIR JI, KRIPYA YASHPAL JI KE UPANYASH UPLABDH KARWANI KI KRIPA KARE, VISHESHTA, JHUTHA SACH-DESH KA BHAVISHYA.
ReplyDeleteVery very nice blog bro. Me bahot dino se ye sab kitabe online dhundh rha tha lekin kahi pr nahi mili. Aaj jab apka blog dekha to pata chala kebye sab books to apke blog me mojud he. Bahot bahot dhanyawad sir
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