"जादू की सरकार" हिन्दी के अप्रितम और अविस्मरणीय व्यंग्यकार शरद जोशी के उन अप्रकाशित व्यंग्य-लेखों का संकलन है जो उनके जीवन काल में पुस्तक का रूप नहीं ले पाए थे। रोज़मर्रा के जीवन-संदर्भों को आधार बनाकर लिखे गए इन लेखों में चुभन भी है और गुदगुदाहट भी। इनमें देश की शासन-व्यवस्था की ख़ामियों पर व्यंग्य है, सामाजिक-आर्थिक जीवन की विसंगतियों पर व्यंग्य है और है आम लोगों की जिंदगी से जुड़ी समस्याओं के दल के लिए की जा रही तमाम नाकाम कोशीशों पर व्यंग्य। व्यंग्यकार ने किसी भी दोष को अनदेखा नहीं किया, न ही किसी घाव या विकृति को ढंकने की कोशिश की है। उनके व्यंग्य सीधे चोट नहीं करते बल्कि अंतर्मन को झकझोरते हैं और सोते हुए से जाग उठने का अहसास कराते हैं।
'जादू की सरकार' में शरद जोशी ने समाज की सड़न को इस रूप में अनावृत्त किया है कि वह चुभती भी है और गुदगुदाती भी है। -रांची एक्सप्रेस
"दैनिक जीवन की छोटी-से-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण समस्या पर जिस बारीकि से इन व्यंग्य में अभिव्यक्ति मिली है वह अन्यत्र मिलाना कठिन है"।
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