कमलेश्वर जी ने अपने उपन्यासों में नारी के विविध रूपों को अभिव्यक्ति दी है। वे नारी जीवन के चितेरे ही नहीं उसके पक्षधर भी हैं। उनके उपन्यासों की अधिकतर नारियां शिक्षित हैं जो कि समय-समय पर अपने शिक्षित होने का प्रमाण देती हैं। 'काली आंधी' की मालती, 'तीसरा आदमी' की चित्रा, 'कितने पाकिस्तान' की सलमा, ' सुबह-दोपहर-शाम' की शांता, 'समुद्र में खोया हुआ आदमी' की तारा 'वही बात' की समीरा, 'अनबीता व्यतीत' की समीरा आदि ऐसी स्त्री पात्र हैं जिन्होंने अपने जीवन से सम्बंधित ठोस कदम उठाए हैं। इन सभी आधुनिक नारियों ने नारी स्वतंत्रता का बिगुल बजाकर नारी जीवन को एक नया और स्वतंत्र धरातल प्रदान किया है।
'समुद्र में खोया हुआ आदमी' के पात्र श्यामलाल के बेरोजगार होने पर उनकी पुत्री तारा चालीस रूपये माहवार पर हरबंस के 'पैटर्न हाउस' में नौकरी करके अपने परिवार को आर्थिक संकट से बचा लेती है श्यामलाल के पिता को लगने लगता है, 'जैसे घर को सिर्फ चालीस रूपये माहवार की जरूरत थी....इतने से रूपयों की कमी के कारण पूरा घर रुका -रुका सा लगता था ।'९ तारा घर खर्च चलने के साथ -साथ अपने छोटे भाई-बहिन की शिक्षा पर भी खर्च करती है ।वह अपनी बहन को नर्सिंग कोर्स के लिए भर्ती करवाती है। उसका मानना है "आजकल नर्सों की बहुत मांग है। पास करते ही कहीं न कहीं नौकरी चट से मिल जाएगी ।"१० वह अपने भाई और बहन को अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती है। इतना ही नहीं वह अपने हमउम्र लड़के हरबंस से प्यार करके बिना दान दहेज़ के विवाह भी कर लेती है। वह बेटी के रूप में बोझ नहीं बल्कि शुरू से लेकर अंत तक वह उनका सहारा बनी हुई नजर आती है।
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